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एक तस्वीर

 एक तस्वीर देखी आज, मासूम सी सूरत, उलझी हुई ज़ुल्फ़ें, धूप और हवा आँख-मिचौली खेलती रहीं, और वक़्त थोड़ी देर को ठहर गया। सब कुछ वही था, कुछ भी बदला नहीं था, वही मासूमियत, वही नज़ाकत, वही सुकून, वही ख़ामोशी। फिर भी कुछ तो अलग था, कुछ तो बदल गया था। एक आवाज़ आई, घड़ी की सुइयाँ फिर चल पड़ीं, और मैं उस लम्हे से लौट आया। मैं मुस्कुराया, मुद्दतों बाद कुछ लिख पाया, वो तस्वीर जो आज सामने आई थी, जज़्बातों की एक लहर साथ लाई थी, दिल के किसी कोने से चुपचाप पुराने वक़्त की यादें उठा लाई थी।